– पर्यावरण परिवर्तन व वन विभाग के उदासीनता रवैए से सुखने लगी गरूड़ के आशियाने के पेड़ की मुख्य शाखा
रिपोर्ट – मनीष कुमार मौर्या , नवगछिया
NAUGACHIA: गरूड़ प्रजनन स्थली में कदवा दुनियां के तीसरे स्थान पर. जहां गरूड़ो की लगातार बढ़ती आबादी के कारण कदवा दियारा विश्व के मानचित्र आ गया है. जो गरूड़ प्रजनन प्रजनन के मामले में असम कंबोडिया भी कदवा से पीछे है. बताते चलें कि इसका मुख्य फलस्वरूप यह है कि यहां के लोगों के द्वारा गरूड़ के प्रति संवेदनशील होकर उसे संरक्षण देना है. जिसके कारण यहां गरूड़ के प्रजनन में हो रहे वृद्धि से बड़े-बड़े पक्षीविद भी हैरान हैं. जहां देश विदेशों से भी पक्षी वैज्ञानिक पर्यटक के रूप में गरुड़ के प्रजनन स्थली का अवलोकन करने हर साल कदवा आ रहे हैं.
इसी बीच गरूड़ों के मुख्य प्रजनन स्थली मवि खैरपुर कदवा में अब गरूड़ों के आशियाने पर खतरा मंडराते हुए देखा जा रहा है. जहां जल-जीवन हरियाली योजना के तहत पर्यावरण परिवर्तन को लेकर मुहिम तो चलाए जा रहे हैं लेकिन, उसका असर नहीं हो पा रहा है. वन विभाग भी इसके लिए सख्त नहीं दिखाई दे रहे है. ज्ञात हो कि कदवा गरूड़ मुख्य प्रजनन स्थली है. जहां पीपल, सेमल, गुलड़, कदंब जैसे पेड़ों पर गरूड़ नवंबर महीने से घोंसले बनाकर प्रजनन करते हैं. मवि खैरपुर कदवा स्थित फोरलेन सड़क किनारे एक विशाल पीपल की पेड़ है.
जहां हर साल ग्रेटर गरूड़ बड़ी संख्या में घोंसले बनाते हैं लेकिन, इस बार वहां गरूड़ के उस आशियाने पर खतरा मंडरा गया है. जहां हर साल की तुलना इस साल उस पेड़ पर सबसे कम गरूड़ अपना घोंसले बनाएंगे. क्योंकि पेड़ की दो सबसे शीर्ष शाखाएं खुख गई है. जिस पर गरूड़ अपना घोंसले बनाते थे. पेड़ की मुख्य शाखाएं खुखने का कारण है कि संबंधित विभाग उस पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. पेड़ के नीचे आश्रम टोला के एक मनबढू पशुपालक किसान अपने मनमानी रवैए से पशुओं को पेड़ के नीचे बांध रहे हैं. जिसके मल-मूत्र से पेड़ की जड़ पर असर पड़ रही है. पेड़ की जड़ के नीचे से मिट्टी कट गई है. वहीं पड़ के बगल में हीं गोबर की एक बड़ी ढेड़ जमा कर रख दिया गया है. पीछले साल नवगछिया रेंजर पीएन सिंह ने पशुपालक को कड़ी हिदायत देकर पेड़ नीचे पशुओं को बांधने से मना कर दिया था. बावजूद इस साल उसका वही रवैया बरकरार रहा. एक ओर सरकार व स्थानीय पदाधिकारियों के द्वारा वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा वहीं बड़े-बड़े पेड़ के बचाव पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. जिसकी अंधाधुन कटाई हो रही है तो वहीं पेड़ में बीमारी होने से सुख जा रहे हैं.
उक्त बातों को लेकर नवगछिया सीओ विश्वास आनंद ने बताया कि दो दिनों के अंदर सुख रही पेड़ की समस्याओं को देख उसे बचाने का प्रयास किया जायेगा. वहीं पशुपालक किसान पेड़ के नीचे से मवेशियों को नहीं हटाया तो उनके ऊपर भी कार्रवाई की जाएगी. मालूम हो कि पूरी दुनिया में जब गरूड़ों की संख्या 700-800 तक की हीं बचे थे तो, उन्हें रेड डाटा में घोषित कर दिया गया था. इसी बीच कंबोडिया व सम में जहां गरूड़ो की संख्या घट रही है तो, कदवा दियारा में लगातार बढ़ रही है. जिसका मुख्य कारण यहां के परिवेश व जागरूक समाज है. यहां के लोग गरूड़ को अपने परिवार के एक अंग के तरह संरक्षण दे रखा है. कदवा इलाके के विभिन्न गांवों में लोगों के घर-आंगन के पेड़ों पर भी गरूड़ बड़ी संख्या में घोंसले बनाकर प्रजनन करते हैं. जिसके मल-मूत्र त्याग से भी यहां के लोग आहट नहीं हो रहे हैं. बल्कि उन्हें संरक्षण दे रहे हैं. मालूम हो कि 2006 ईस्वी के सर्वेक्षण में यहां सिर्फ 18 गरूड़ों के घोंसले थे. जहां लगातार बढ़ कर अप्रेल 2019 में करीब 150 गरूड़ के घोंसले हो गई. गरूड़ प्रजाति की बात करें तो कदवा में कुल 6 प्रकार की गरूड़ पाए जाते हैं जो क्रमशः ग्रेटर एटजुटेंट स्टार्क (बड़ा गरूड़), लेसर एडजुटेंट (छोटा गरूड़), ब्लैक नेक स्टार्क (लोहा सारंग), उलीनेक स्टार्क (लगलग), पेंटेड स्टार्क (जांघिल) व ओपन बिल स्टार्क (घोंघिल) है.