20240601 145446

Loksabha Election 2024: कैसे होती है आपके वोटों की गिनती, यहां समझिए मतगणना का पूरा प्रोसेस

Lok Sabha Elections 2024: देश में 1 जून शनिवार को 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए आखिरी चरण का मतदान हो रहा है. इसके ठीक तीन दिन बाद यानी 4 जून 2024 को वोटों की गितनी की जाएगी . इसी के साथ इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वाले प्रत्याशियों के जीत-हार के नतीजे घोषित किए जाएंगे. आम तौर पर वोटों की गितनी ‘राउंड’ में की जाती है, जिसे चक्र या चरण भी कहते हैं . लोगों को जीतने हारने वाले उम्मीदवारों का तथा उनको मिलने वाले वोटों का पता चल जाता है पर वोटों की गिनती दरअसल होती कैसे है ये पता नहीं चल पाता. आइए जानते हैं चुनाव और मतगणना से संबंधित पूरी जानकारी.

सबसे पहला सवाल ये उठता है कि मतदान और मतगणना की तारीख कौन तय करता है ? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में किसी भी चुनाव के लिए मतदान और मतगणना की तारीखों को निर्वाचन आयोग तय करता है. निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, मतदान और मतगणना की प्रक्रिया को संसदीय क्षेत्र के रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) की निगरानी में पूरा कराया जाता है. रिटर्निंग ऑफिसर ही मतगणना केंद्रों की घोषणा करते हैं और मतों की संख्या के आधार पर मतगणना केंद्र आवंटित किए जाते हैं.

अब सवाल यह सामने आता है कि आखिर रिटर्निंग ऑफिसर कैसे तैनात किए जाते हैं? मतदान और मतगणना की प्रक्रिया को पूरा कराने के लिए भारत का निर्वाचन आयोग (ईसीआई) रिटर्निंग ऑफिसर्स को तैनात करता है. ये रिटर्निंग आफिसर्स सरकार का अधिकारी या स्थानीय प्राधिकार होता है. किसी भी रिटर्निंग ऑफिसर को नामित करने से पहले निर्वाचन आयोग राज्य सरकार से मशविरा करता है और सरकार की सलाह पर उनकी नियुक्त करता है. किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के सरकारी स्कूल या कॉलेज को रिटर्निंग ऑफिसर का मुख्यालय बनाया जाता है. इसके साथ ही, रिटर्निंग ऑफिसर की सहायता के लिए सहायक रिटर्निंग ऑफिसर भी नियुक्त किए जाते हैं. मतगणना के दौरान रिटर्निंग ऑफिसर पोस्टल बैलेट पेपर की गिनती कराने के लिए जिम्मेदार होते हैं, जबकि सहायक रिटर्निंग ऑफिसर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) से मतों की गिनती कराते हैं.

अब ये बात दिमाग में आती है कि मतगणना की निगरानी आखिर कौन करता है?bभारत में मतगणना की प्रक्रिया काफी साफ- सुथरी और सरल है. किसी भी मतगणना केंद्र पर जब मतों की गिनती की जाती है, तो वहां मतगणना एजेंट भी तैनात किए जाते हैं. यही मतगणना एजेंट मतों की गिनती के समय निगरानी करते हैं. निर्वाचन आयोग को प्रत्येक मतगणना वाले टेबल के लिए काउंटिंग ऑब्जर्वर, काउंटिंग असिस्टेंट और माइक्रो-ऑब्जर्वर की जरूरत पड़ती है. सुरक्षा के लिए काउंटिंग टेबलों को बैरिकेड्स या तार की जाली से घेर दिया जाता है, ताकि ईवीएम एजेंटों की पहुंच से दूर हो, लेकिन दूर बैठकर ही मतगणना की प्रक्रिया को देख और जांच कर सकते हैं.

अब आते हैं सबसे मुख्य सवाल पर कि आखिर मतों की गिनती कैसे होती है? मतों की गिनती के लिए निर्वाचन आयोग की ओर से काउंटिंग हॉल बनाने के इंतजाम किए जाते हैं. लोकसभा चुनाव में मतगणना के लिए एक काउंटिंग हॉल में 14 टेबल लगाई जाती हैं. वहीं, विधानसभा चुनाव के लिए काउंटिंग हॉल में सात टेबलों को लगाया जाता है. ये सभी टेबल एक-दूसरे के आमने-सामने होती हैं. मतों की गिनती सुबह आठ बजे से शुरू की जाती है, जिसकी निगरानी रिटर्निंग ऑफिसर करते हैं. निर्वाचन आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, मतगणना के दौरान सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती की जाती है. इसकी प्रक्रिया पूरी होने के आधे घंटे बाद ईवीएम से मतों की गिनती की जाती है. पोस्टल बैलेट की होने वाली मतों की गिनती फर्स्ट राउंड, पहले चक्र या पहले चरण की गिनती कहलाती है.

अब सवाल उठता है कि मतगणना में राउंड क्या होता है? निर्वाचन आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, मतों की गिनती जितने चक्र में की जाती है, उसे ही राउंड या चरण कहते हैं. प्रत्येक राउंड की गिनती के लिए एक साथ 14 ईवीएम मशीनों में डाले गए मतों की गिनती की जाती है. एक राउंड में जब 14 ईवीएम मशीनों में डाले मतों की गिनती पूरी हो जाती है, तो फिर काउंटिंग हॉल में सजाई गईं 14 टेबलों पर अगले राउंड की गिनती के लिए 14 ईवीएम मशीनों को लाया जाता है. यह जो 14 ईवीएम मशीनों का सेट तैयार किया जाता है, यह एक राउंड की गिनती कहलाता है. मतदाताओं और पोलिंग बूथ की संख्या के आधार पर ईवीएम मशीनों की संख्या घट-बढ़ सकती है. किसी निर्वाचन क्षेत्र में आठ से 10 राउंड की गिनती पूरा होने के बाद जीत-हार के नतीजे घोषित कर दिए जाते हैं, तो कहीं पर 100 से अधिक राउंड तक गिनती चलती है. बताया जा रहा है कि इस बार की मतगणना में आंध्र प्रदेश में 140 राउंड तक मतों की गिनती की जा सकती है.

अब आते हैं अगले सवाल पर कि वीवीपैट पर्चियों का मिलान कैसे होता है? निर्वाचन आयोग की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, इलेक्ट्रिक वोटिंग मशीनों से जब मतों की गिनती की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है, तब वीवीपैट के मिलान की प्रक्रिया शुरू की जाती है. वीवीपैट को वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल्स भी कहा जाता है. वीवीपैट पार्टी का नाम, नंबर और चुनाव चिह्न दर्ज करता है, जो मतदान के समय मतदाता को लगभग सात सेकंड तक दिखाई देता है. इसे बाद में मशीन में कलेक्ट कर दिया जाता है और इसका इस्तेमाल ईवीएम के नतीजों की पुष्टि के लिए किया जा सकता है. वीवीपैट का सत्यापन मतगणना हॉल के भीतर स्थित एक सुरक्षित वीवीपैट काउंटिंग बूथ के अंदर किया जाता है.

Share This Post:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *