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Heatwave in India: शहरों में भीषण गर्मी की वज़ह AC हैं, जानिए कितनी है सच्चाई, क्या है एक्सपर्ट की राय ?

DESK : गर्मी में शहरों में कहीं भी जाएं हर तरफ AC ही AC नजर आते हैं. लोग AC में बैठना खासा पसंद भी करते हैं, लेकिन कोई ये सोचने को तैयार नहीं है कि इतने सारे AC के बावजूद शहर क्यों धधक रहे हैं. कहीं इसका कारण AC ही तो नहीं हैं.

दरअसल देश के विभिन्न हिस्सों में पड़ रही भीषण गर्मी के कारण बिजली की अधिकतम मांग रिकॉर्ड 246.06 गीगावाट पर पहुंच गई है. गर्मी से राहत के लिए घरों एवं ऑफिस में AC और कूलर का इस्तेमाल बढ़ने से बिजली की खपत बढ़ रही है. मगर यही एसी घर या दफ्तर में आग लगने का कारण भी बन रहे हैं. नोएडा के सेक्टर 100 में स्थित लोटस ब्लूबर्ड सोसाइटी में एयर कंडीशनर फटने से पूरा का पूरा फ्लैट भयानक आग की चपेट में आ गया. इसी तरह 27 मई को मुंबई के बोरीवली वेस्ट के एक फ्लैट में आग से पूरा फ्लैट जल कर राख हो गया. 27 मई को ही हरियाणा के हिसार में एक अस्पताल में आग लग गई. आग लगने का कारण एसी में ब्लास्ट था. रोजाना इसी तरह की घटनाएं अलग-अलग इलाकों में हो रही हैं.

एक्सपर्ट कहते हैं कि एयर कंडीशनिंग का उपयोग करने से उसमें से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण के लिए घातक होती हैं. इन गैसों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रो-क्लोरोफ्लोरोकार्बन शामिल हैं । पर्यावरण पर इन गैसों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. यह गैसें गर्मी पैदा करती हैं और ओजोन परत के क्षरण का कारण बनती हैं.

समस्या ये है कि हमारा पर्यावरण जितना गर्म होता है, हम एयर कंडीशनिंग सिस्टम का उतना ज्यादा यूज करते हैं. एसी से खतरनाक गैसें निकलती हैं. भारत के ज्‍यादातर घरों में एयरकंडीशनर और फ्रिज में भरी जाने वाली गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बंस यानी एचफएफसी गैसें इतनी खतरनाक होती हैं कि यूरोप में इन पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की तैयारी की जा रही है. दरअसल, हाइड्रोफ्लोरोकार्बंस पर्यावरण और लोगों की सेहत को बहुत ज्‍यादा नुकसान पहुंचाती हैं. लिहाजा, यूरोपीय संघ में बेहद खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों में शामिल हाइड्रोफ्लोरोकार्बंस गैसों को फेज आउट करने पर संधि समझौता भी हुआ है.

हम घरों में जितनी एसी चलाते हैं, उसका बिजली का बिल उतना ही बढ़ा होता है, एयर कंडीशनिंग सिस्टम बहुत अधिक बिजली की खपत करते हैं और बिजली उत्पादन उद्योग पर दबाव डालते हैं. इस कारण प्रदूषण मे इजाफा होता है, क्योंकि बिजली उत्पादन में कुछ देशों में आज भी कोयले का इस्तेमाल होता है.

शहरों में सबसे ‌अधिक एसी का यूज होता है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में लगभग 13% भारतीय घरों में एयर कंडीशनर है, जिनकी संख्या 2040 तक बढ़कर 69% हो जाएगी. भारत के साथ-साथ अन्य देशों जैसे कि इंडोनेशिया (Indonesia) में भी इस संख्या में वर्तमान 9% से 61% तक की तीव्र वृद्धि देखी जाएगी, जबकि ब्राजील (Brazil) और मैक्सिको (Mexico) देशों के मामले में, यह संख्या 29% के वर्तमान स्तर से क्रमश: 85% और 53% तक बढ़ जाएगी. यानी जिस तरह घरों में एसी लगाने का चलन बढ़ा है वह घातक है.

पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों के अलावा, एयर कंडीशनिंग भी स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो इस पर पूरी तरह निर्भर हैं. एक एयर कंडीशनिंग सिस्टम का लगातार इस्तेमाल करने से उसका एयर फिल्टर अपनी इंटिग्रेटी खो देते हैं और हानिकारक कंपाउंड को बाहर से आपके घर या ऑफिस में आने की अनुमति देते हैं. ये कुछ मामलों में आंख, नाक और गले में जलन भी पैदा कर सकते हैं.

गांव के तुलना में शहर में गर्मी अधिक लगती है, इसकी वजह है शहरों में पेड़-पौधों की कमी, हरियाली का कम होना, धड़ल्ले से काटे जा रहे पेड़, पक्की सड़कों का बनना, शहर में वाहनों से निकलते हुए धुएं, इमारतों की लगातार बढ़ रही संख्या, घरों में एसी का खूब सारा इस्तेमाल, यही वजह है कि तापमान भी उसी रफ़्तार में बढ़ रहा है. ऐसे में शहर को अब ‘अर्बन हीट आइलैंड’ या फिर ‘हीट आइलैंड’ कहा जाने लगा है. अगर हवा की गति कम है तो शहरों को अर्बन हीट आइलैंड बनते आसानी से देखा जा सकता है.

शहरों में जितनी ज़्यादा जनसंख्या होगी, हीट आइलैंड बनने की गुंज़ाइश उतनी ही ज़्यादा होगी. जब हम शहरों की सीमा पार करते हैं, हमें राहत महसूस होती है. इसलिए गांवों की तरफ गर्मी कम होती है.

शहरों में बढ़ते निर्माण कार्यों और उसके बदलते स्वरूप के चलते हवा की गति में कमी आई है. हरियाली वाले क्षेत्र कम हो रहे हैं. सड़कों का विस्तार हो रहा है. तापमान वृद्धि में ग्लोबल वार्मिंग एक वजह ज़रूर है. इसी बीच गर्मी ने ऐसा कहर बरपाया कि घरों में एसी लगवाना लोगों के लिए मजबूरी बन गई.

ओजोन परत को भी एसी नुकसान पहुंचा रहा है। शहरों में कारखानों और फैक्ट्री से निकलते धुएं से पहले ही पर्यावरण को काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. इसी बीच एक खबर के मुताबिक घरों में उपयोग होने वाले यह उपकरण आने वाले 30 सालों में बढ़कर चार गुना हो जाएंगे. अगर इस गैस के रिसाव को कम करने के लिए केवल एसी के इस्तेमाल को बढ़ने से रोक लिया जाता है तो इससे तापमान को 0.4 फीसदी बढ़ने से रोका जा सकता है.

यूएनईपी और अंतराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के एक रिसर्च के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में ठंडा करने वाली उपकरण जैसे एसी, फ्रिज का इस्तेमाल 360 करोड़ है जिसका उपयोग आने वाले 30 सालों में बढ़कर 1400 करोड़ हो जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक एसी से निकलने वाली कार्बन डायऑक्साइड, ब्लैक कार्बन और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन जैसे हानिकारक गैंसें धरती के ओजोन लेयर को काफी नुकसान पहुंचा रही है.

यह सब देखते हुए ये कहा जा सकता है कि जो चीजें हम अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल करते हैं वही हमें नुकसान पहुंचा रही हैं । लेकिन अब समय है प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग कर स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को बचाने का. अगर हम समय रहते नहीं चेते तो नुकसान सामने नजर आ ही रहा है ।

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