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मेन्टल हेल्थ के लिए सोशल मीडिया है मीठा ज़हर, अत्याधिक प्रयोग है घातक

रिपोर्ट – आकाश कुमार

DESK: अमेरिका में 33 राज्यों में मेटा पर बच्चों को घातक सामग्री परोसने के लिए केस दर्ज किया गया है। मेटा पर आरोप है कि वह जानबूझकर बच्चों को ऐसी सामग्री परोसता है जिसके वे आदि हो जाते हैं। मेटा जानबूझकर बच्चों को लत लगवा रहा है जिसके बच्चों पर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। भारत में भी सरकार को सोशल मीडिया पर परोसी जा रही सामग्री को लेकर सतर्क रहना चाहिए। फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स पर काफी काम की सामग्री भी होती है लेकिन इसकी लत लगने पर लोग घंटों रील व वीडियोज़ देखने में लगाते हैं। भारतीय समाज पर भी इन सोशल साइट्स का काफी प्रभाव पड़ा है। 

लोग सोशल मीडिया के इतने एडिक्टेड हो जाते हैं कि पहले उन्हें इसके बारे में अंदाजा ही नहीं होता और धीरे-धीरे वह इस एडिक्शन के शिकार हो जाते हैं, उससे निकल ही नहीं पाते। खासकर लड़कियों पर इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स का काफी प्रभाव पड़ रहा है। लड़कियां इन रील्स और वीडियोज़ से इतनी प्रभावित होती हैं कि अपनी तुलना रील से करना शुरू कर देती हैं जिससे उनमें धीरे-धीरे नकारात्मक भावना पैदा होती है या फिर लड़कियां रील्ज़ में दिखाये गये स्टाइल को फॉलो करने लगती हैं। 

दैनिक जीवन में सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत रिश्तों पर भी प्रभाव डालता है। अगर हम अपने आसपास देखें तो क्या बच्चे, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं – सभी फोन पर ही नजर आते हैं। हर कोई अपनी रील बनाने में लगा रहता है जिसके दुष्परिणाम हमारे समाज में सामने भी आ रहे हैं। परिवार के सदस्य एक कमरे में बैठने के बावजूद एक दूसरे से कम बात करते हैं और सोशल मीडिया पर समय ज्यादा बिताते हैं।
बच्चे पढ़ते समय भी थोड़ी-थोड़ी देर में नोटिफिकेशन आने पर अपना फोन चेक करते रहते हैं। मां-बाप को बच्चों को बताना चाहिए कि एक-एक मिनट कीमती है उसे यूं ही बर्बाद न करें। सोशल मीडिया पर वीडियोज़ या रील्ज़ देखने से कुछ हासिल नहीं होता है।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में भी सोशल मीडिया-फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूटयूब, टेलीग्राम आदि के बढ़ते चलन से मानसिक विकार के मामले बढ़े हैं। उनका कहना है कि मां-बाप को बच्चों की सोशल मीडिया की हर एक्टिविटी पर नज़र रखनी चाहिए और उन्हें सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों के बारे में समझाना चाहिए। बच्चों के सामने फोन व सोशल साइटस का कम प्रयोग करें और उन्हें इसके खतरों के बारे में अगाह करें। सरकार को सोशल मीडिया साइट्स के दुष्प्रभावों का अध्ययन करवाना चाहिए।

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