DESK: भगवान राम केवल अयोध्या या भारत के ही राजा नहीं थे, वे सम्पूर्ण वसुंधरा के राजा थे। दुनियां का कोई ऐसा देश या क्षेत्र या संस्थान नहीं है जहां कि प्रभु राम न हों। वहां की संस्कृति में, जनजीवन में, आहार विहार में, आचार विचार में, सभ्यता संस्कृति में भगवान श्रीराम सब जगह हैं। उनका हर जनमानस पर पूरा प्रभाव है। राम शब्द के र उच्चारण से ही मुंह खुल जाता है और म से मुंह बंद हो जाता है। खुलना और बंद होना यानि सृष्टि होना और लय होना सब राममय है। जिससे शुरू और समाप्त दोनों हो जाता है। भगवान राम से त्यागमय जीवन की शिक्षा मिलती है।
ये उद्गार शिव शक्ति योगपीठ नवगछिया के पीठाधीश्वर संत शिरोमणि परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज (Swami Aagmanand Ji Maharaj) के हैं। जिसे उन्होंने विज्ञान भवन नई दिल्ली में सोमवार 10 अक्टूबर को साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था मुंबई द्वारा आयोजित श्री राम कमा विश्व संदर्भ महाकोश (इन्साक्लोपीडिया ऑफ रामायण) के ‘राम कथा का जनमानस पर प्रभाव’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के 58 खंडीय परियोजना अंतर्गत द्वितीय खंड “भजन कीर्त्तन में श्रीराम” ग्रंथ के लोकार्पण समारोह में अध्यक्षीय संबोधन में व्यक्त किया।
जहां विशिष्ट अतिथि के रूप में केन्द्रीय राज्य पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री किशन रेड्डी के साथ साथ डॉ स्वामी दिव्यानंद जी महाराज एवं मॉरीशस निवासी ज्ञान धानुक चंद, ग्रंथ संपादक सह सचिव डॉ प्रो प्रदीप कुमार, अध्यक्ष बनवारी लाल जाजोदिया, डॉ गोपाल राय, डॉ हिमांशु मोहन मिश्र इत्यादि की गरिमामयी उपस्थिति थी।